एक समय था जब लोग अपनी रचनाओ को लिख कर पत्रिकाओ और समाचार पत्र के संपादक को भेजा करते थे और महीने भर बाद अगर आपका लेख संपादक को पसंद आता तो उसे छापा हुआ देखना नसीब होता था। पर अब समय कितना बदल चूका है। अब आप लिखने के शौकीन हो तो बस अपना (blog) बनाइये और जो चाहे लिख कर उसे ब्लोग पर छाप दीजिए । ना तो किसी कि पसंद या नापसंद कि फिक्र न ही कोई इंतज़ार । मैंने भी जब लोगों को ब्लोग बनाते और लिखते हुए देखा तो सोचा क्यो न मैं भी अपना ब्लोग बनाऊ और मैं भी शुरू हो गयी। और आज लिखते हुए कितना सुकून मिलता है। ब्लॉगर जो कि गूगल का ही एक हिस्सा है उसमे कितनी सुविधा हो गयी है। दुनिया कि हर मुख्य भाषा मे ब्लोग बनाए जा सकते है और लिखना भी बहुत आसान । पहले पहल तो मुझे हिन्दी मे लिखने के लिए अंग्रेजी के शब्दों को लिखने मे कुछ दिक्कत हुई पर चूँकि हिन्दी मे संक्षिप्त संदेश भेजने के लिए अंग्रेजी का जैसे इस्तेमाल करती थी वैसे ही इसमे करते हुए कोई कठिनाई नही हुई। चिटठा और चिट्ठाकारिता हुआ कितना आसान ! मैं गूगल और सभी चिट्ठाकारों को धन्यवाद देना चाहती हूँ जिनसे प्रेरित होकर मुझे भी ब्लोग बनने कि सूझी और एक नयी शुरुआत हुई। हिन्दी चिट्ठाकारिता से मुझे लगता है कि कई ऐसे लोग है जिनमे कई नए लेखकों का जन्म होगा और हिन्दी रचना जगत मे हिन्दी का और भी विकास होगा
जल्द ही फिर मिलती हूँ
Wednesday, January 30, 2008
Monday, January 28, 2008
Agony of maid servants काम वाली बाई का दर्द
एक औरत जिसके बिना शायद घर का काम अधूरा ही लगता है। जी हाँ काम वाली बाई। एक दिन भी काम वाली न आये तो बर्तन धोने झाडू पोछा करना मुश्किल हो जाता है। आदत नही होती ये सब करने कि या अचानक करना पड़े तो कुछ महिलाओ को नानी याद आ जाती है। मैं ऐसी कई महिलाओ को जानती हूँ जिन्हें काम वाली बाई का एक दिन भी नागा करना स्वीकार नही। बाई के आने के टाइम से थोडा ऊपर हुआ नही कि दरवाजे से झांक कर रह देखना शुरू हो जाता है । अगर अगल बगल कोई दिखाई पड जाये तो फौरन पूछने से चूकती नही " सुनिए बहन जी आज काम वाली बाई नही आई, पता नही कहाँ रह गयी मेरे तो सारे बर्तन जूठे पड़े है। इनका कोई ठिकाना नही, कोई टाइम नही" अगर बगल वाली ने यह कह दिया कि हां आयी है तब खुश होकर अन्दर चली जाएँगी । अगर कह दिया कि नही आयी है तब पैर पटकते, बुदबुदाते हुए घर के अंदर जाती है । अब साहब जब दूसरे दिन काम वाली बाई जैसे ही घर मे घुसी और इससे पहले कि वो कुछ बोलती उसके ऊपर प्रश्नों कि बौछार शुरू हो जाती है। " ये क्या तरीका है ? कल क्यों नही आई ? नही आना था तो खबर तो कर देती। ऐसे नही चलेगा। गुस्से मे अगर बाई कह दे कि ठीक है कोई दूसरी बाई देख लो तो उनका सारा गुस्सा काफूर हो जाता है। शायद ये स्थिति भारत मे आम है। काम वाली बाई के बिना महिलाओ का घर संभाल पाना नामुमकिन सा लगता है। पर कहते है महिला ही महिला कि दुश्मन होती है । उसे दूसरे का दर्द या तकलीफ नही दिखाई देती । क्या काम वाली बाई इंसान नही होती। क्या उसे किसी काम से कही जान नही होता? क्या उसे बिमारी नही आती? या उसके घर मे कोई बीमार नही होता? निम्न वर्ग कि गरीब महिलाओ कि इस दर्द को कोई जल्दी नही समझ पाता। वो हमारे घर मे आती है काम करती है और चुप चाप चली जाती है । उनके होने का एहसास हमे तब होता है जब वो काम पर नही आती है।
काश हम महिलाए भी काम वाली बाई को एक महिला और इंसान कि नज़र से देख पाते । अगर हम महिलाए भी उनके जीवन मे झांके तो वो भी बिल्कुल हम महिलाओ कि तरह ही होती है। उनका भी परिवार होता है, बच्चे होते है, उन्हें भी सबकी तरह अपने घर कि देखभाल और जिम्मेदारी होती है। उनको भी बिमारी आ सकती है । शायद उनको सम्मान और इज्ज़त देकर हम उनके होठों पर मुस्कराहट ला सकते है।
काश हम महिलाए भी काम वाली बाई को एक महिला और इंसान कि नज़र से देख पाते । अगर हम महिलाए भी उनके जीवन मे झांके तो वो भी बिल्कुल हम महिलाओ कि तरह ही होती है। उनका भी परिवार होता है, बच्चे होते है, उन्हें भी सबकी तरह अपने घर कि देखभाल और जिम्मेदारी होती है। उनको भी बिमारी आ सकती है । शायद उनको सम्मान और इज्ज़त देकर हम उनके होठों पर मुस्कराहट ला सकते है।
Bravo
I have just created my own blog. Hi friends ! How are you. Don't know what to write ... so keep coming and checking what i will write. I have a lot to write.... so i am going to collect all my things to write... see you...
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